Jahnavi Sharma

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अमावस्या की रात


लाजपत नगर, दिल्ली
दी पेरानॉर्मलस का ऑफिस.... 

दी पैरानॉर्मल्स दिल्ली की एक जानी-मानी घोस्ट हंटिंग एंड इन्वेस्टिगेटिंग टीम थी। पैरानॉर्मल्स की टीम में सिर्फ 4 सदस्य थे और इस टीम का हेड साहित्य देसाई लंदन से पैरानॉर्मल एक्टिविटीज की स्टडी करके आया था। इंडिया में भूत प्रेत से जुड़े अंधविश्वास बहुत फैले हुए थे.... लेकिन उनसे निपटने के लिए अक्सर किसी तांत्रिक या बाबा का सहारा लिया जाता था। 

यही वजह थी कि साहित्य की टीम में उसने ज्यादा लोगों को इंवॉल्व नहीं किया था। टीम के पास एक नया केस आया था, लेकिन साहित्य की प्रॉब्लम यह थी कि उसके 4 टीम मेंबर किसी न किसी वजह से हॉलीडे पर थे। साहित्य इस केस को अपने हाथ से नहीं जाने देना चाहता था.... इसलिए उसने न्यूज़पेपर में घोस्ट हंटर्स की पोस्ट के लिए वैकेंसी डाल दी थी। 


अपराजिता अपार्टमेंट
शर्मा परिवार.....
दिल्ली 

शर्मा परिवार दिल्ली की एक मिडिल क्लास फैमिली थी। जहां मिस्टर राघव शर्मा अपनी पत्नी सिया शर्मा और इकलौती बेटी लवी शर्मा रहते थे। लवी ने अपना पोस्ट ग्रेजुएशन कंप्लीट कर लिया था और अब एक जॉब की तलाश में थी। हालांकि घोस्ट हंटिंग में लवी को कोई रुचि नही थी। 

"इतने दिनों बाद कोई ढंग की वैकेंसी मिली भी तो घोस्ट हंटिंग की... अच्छी खासी ज़िंदगी चल रही होती है, पता नही लोगो को क्या शौक होता है कि भूत प्रेत ढूँढने निकल पड़ते है" लवी न्यूजपेपर रखते हुए बड़बड़ाई। 

"लवी बेटा आज दो महीने हो गए तुझे जॉब ढूंढते...जॉब नही मिल  रही, तो हाँ क्यों नही बोल देती अपने पापा को... मानस बहुत अच्छा लड़का है... और जॉब तो तु शादी के बाद भी कर ही सकती है" सिया जी किचन से चिल्लाते हुए बोली। 

"चाहे कुछ भी हो जाए, मै उस मोटे मानस से शादी बिल्कुल नही करूँगी... लेकिन जॉब मिल भी तो नही रही। एक काम करती हूँ कि सबको दिखाने के लिए ये भूत पकड़ने वाली कंपनी जॉइन कर लेती हूँ...कौनसा मेरे जाते ही ये भूत पकड़ने निकल जाएगे" लवी ने सोचा। 

"लवी कुछ तो जवाब दे मेरी बातों का.... या मै ऐसे ही बकवास किये जा रही हूँ। बहुत हो गया तेरा ड्रामा... आज शाम को बोलती हूँ मै तेरे पापा से कि लवी मानस से शादी के लिए तैयार है" सिया जी गुस्से में बोली। 

"अरे मम्मी मुझे अच्छी वेकेंसी मिल गयी है। बस उसी के इंटरव्यू के लिए जा रही हूँ। दुआ करना कि सेलेक्ट होकर आऊँ" लवी ने सिया जी के पास आकर कहा। 

लवी जल्दी से तैयार होकर पेरानॉर्मलस की ऑफिस निकल पड़ी। लवी वहाँ पहुँच पर बहुत हैरान हुई क्योंकि उसने जैसा सोचा था, वहाँ का माहौल उस से बिल्कुल विपरीत था। 


वो अंदर गई, तो सामने एक बड़ी सी डेस्क सामने लगी थी। उसके आगे कुर्सी पर एक आदमी बैठा बड़बड़ा रहा था। 
"2 दिन हो गए वैकेंसी डाले। अभी तक कोई नहीं आया... अगर आज भी कोई नहीं आया, तो निकल गया यह मौका भी हाथ से। मुझे लंदन में ही कोई जॉब कर लेना चाहिए था। क्यों भूल गया कि इंडिया में लॉजिक नहीं मैजिक से काम लेते हैं। इनके हिसाब से अगर कहीं पर भी नेगेटिव एनर्जी दिखे या महसूस हो, तो निकल पड़ो किसी तांत्रिक या ओझा को लेकर।" वो परनॉर्मल्स का मालिक साहित्य था। 

खुद से बात करते हुए उसकी नजर लवी पर गयी, तो उसके दिल मे लवी को देखकर थोड़ी उम्मीद जागी। 

"अरे! तुम इंटरव्यू के लिए आई हो। वहां क्यों खड़ी हो ?आ जाओ यहां... और तुम हैरानी से इधर उधर क्या देखे जा रही हो?" साहित्य ने लवी से पूछा। 

"हैरान होना तो बनता है सर... मैंने तो सोचा था यहां पर बिल्कुल अंधेरा होगा और आग जलाकर निंबू मिर्ची का घेरा बनाकर काले कपड़े पहने कोई बाबा भूत प्रेत को बुला रहे होंगे" लवी ने हैरान होकर कहा। 

लवी की बात सुनकर साहित्य जोर जोर से हंसने लगा, तो लवी उसकी हंसी में खो गयी। 

"देखिए ऐसा कुछ नहीं है मैडम। मैं आपको पहले ही बता दूं कि हम लोग कोई नींबू मिर्ची का घेरा बनाकर आत्मा वगैरह को नहीं बुलाते। मतलब आत्मा वगैरह
से तो बातचीत करते हैं, लेकिन उसके लिए हमारे पास स्पेशल इंस्ट्रूमेंट है। मैम कल अमावस्या की रात है और कल की रात ही हमें हमारी मिशन के लिए निकलना होगा। मेरी टीम छुट्टी पर है, वरना मैं ऐसे अर्जेंट में किसी को हायर नहीं करता" साहित्य ने एक सांस में अपनी सारी बातें बोल दी। 

"लेकिन मेरा इंटरव्यू तो ले लीजिए और मेरी सैलरी... " लवी हिचकिचाते हुए बोली। 

"डोंट वरी मैं आपको अच्छा पे करूंगा। इसके बारे में हम बाद में बातचीत करेंगे... लेकिन कल हमें हमारी मिशन के लिए दिल्ली से बाहर पास के ही एक गांव में एक पुराने खंडहर के अंदर जाना है। पहले वहाँ हवेली थी, बाद मे उसे एक धर्मशाला मे बदल दिया गया था। उस धर्मशाला को खंडहर बने आज 100 साल हो गए, उसके बावजूद हर अमावस्या को वहां पर वह खंडहर एक धर्मशाला में बदल जाता हैं, जिसके हर एक कमरे में अलग-अलग लोग दिखाई देते हैं। मानो वहाँ एक अलग ही दुनिया बसती हो। बस हमें इसी पहेली को समझने के लिए वहां पर जाना होगा। " गौरव ने लवी को संक्षेप मे समझाया। 

लवी को साहित्य की बात सुनकर बहुत डर लगा, लेकिन उसके पास में यह नौकरी करने के अलावा और कोई दूसरा रास्ता नहीं होता। ना चाहते हुए भी लवी साहित्य को उस काम के लिए हां बोल दी। और दूसरे दिन शाम को आने का वादा कर वापिस घर चली गयी। 

अगले दिन

लवी अपने वादे के मुताबिक शाम के 5:00 बजे साहित्य के पास पहुंची। साहित्य और लवी दोनों मिलकर दिल्ली से लगभग 5 घंटे की दूरी पर स्थित एक गांव में गए। 

"भूत पिशाच निकट नहीं आवे। 
महावीर जब नाम सुनावे।।"
लवी बड़बड़ाने लगी। 

साहित्य ने जब लवी की हालत देखी तो वह जोर-जोर से हंसने लगा। 

"एक बात पूछूं? तुमने किस मजबूरी में इस जॉब के लिए हां कही है? तुम्हें देखकर कोई भी बता दे कि तुम्हें इन सब चीजों से कितना डर लगता है" साहित्य ने हैरान होकर पूछा। 

"अगर मै ये जॉब नही करती, तो आज एक मोटे से लड़के की मंगेतर होती। एक्चुअली मेरे पापा के दोस्त का लड़का मानस मुझे बचपन से पसंद करता है। और उस रिश्ते से बचने के लिए मेरे पास में यही एक तरीका था कि मैं कोई नौकरी ढूंढ लूं। मुझे क्या पता था कि नौकरी के पहले ही दिन तुम मुझे भूत पकड़ने के लिए ले आओगे" लवी ने डरते हुए कहा। 

साहित्य और लवी बात कर ही रहे थे कि रात के 12:00 बज चुके थे और अमावस्या की रात शुरू हो चुकी थी। जो खंडहर वीरान पड़ा था... अचानक से वहां पर एक धर्मशाला खड़ी हो गयी, जो कि देखने में बहुत डरावनी लग रही थी। उनकी आँखों के सामने वो खंडहर एक जादुई दुनिया मे परिवर्तित हो गया। 
उसके हर एक कमरे में खिड़की और दरवाजे बंद थे... कांच के उस पार लोग दरवाजों पर हाथ पीटे जा रहे थे और मदद के लिए बुलाए जा रहे थे। 

"ओ माय गॉड... मैंने अपने पिछले 5 साल के करियर में और स्टडी में कभी भी नेगेटिव एनर्जी को ऐसे सामने से कभी नही देखा। हमेशा उन्हें किसी ना किसी इंस्ट्रूमेंट के थ्रू फील ही किया है। हमने यहां आकर कोई गलती तो नहीं कर दी।" साहित्य हैरान होकर बोला। 

"अरे तुम्हें यहाँ फील लेने के लिए नहीं बुलाया गया। भूत भगाने के लिए बुलाया है। भूत भगाने वाले सर ....चलिए अब जब देख ही लिया है, तो हनुमान चालीसा पढ़ कर इन भूतों को यहां से भगा देते हैं। " लवी ने कांपते हुए कहा। 

" तुम टीवी सीरियल ज्यादा मत देखा करो। हमें जाकर इन लोगों की मदद करनी चाहिए। ये आत्माएं यहाँ क्यों कैद है, और इनकी मुक्ति कैसे हो सकती है.. ये यही हमे बता सकती.... और ये सब अमावस्या की ही रात को यहाँ क्यों आ जाती है। आखिर रहस्य क्या है इस अमावस्या का" साहित्य के मन हज़ारो सवाल खड़े हो रहे थे। 

वहीं साहित्य की बात सुनकर लवी वहां से भागने लगी कि वह उसका हाथ पकड़ कर उसे वापस धर्मशाला की तरफ ले गया। 

वहां जाकर उन दोनो ने देखा कि धर्मशाला में जो लोग कैद है, वो सिर्फ बच्चे ही हैं... ना कि कोई व्यस्क आत्माएं। 

उस हवेली मे नीचे के मंजिल पर कमरे बने हुए थे... और उनमे बहुत सारे बच्चो की आत्माए थी। वह सभी बच्चे देखने में बहुत अजीब थे। उन सबके कोई ना कोई शारीरिक विकृति थी। किसी की आंखें बाहर निकली हुई थी, तो किसी ने अपने शरीर को अंदरूनी अंग जैसे दिल, फेफड़ा, दिमाग आदि को हाथ मे ले रखा था। 
किसी बच्चे के एक हाथ नही था, तो किसी बच्चे के पांव नहीं थे। वह सारे मदद के लिए चिल्ला रहे थे...

लवी  को उन बच्चों को देखकर बहुत बुरा लगा कि दरवाजा खोलने के लिए जैसे ही अपना हाथ बढ़ाया, तो एक बच्चे ने हाथ पकड़ कर उसे अंदर खींच लिया। लवी भी उस धर्मशाला के कमरे में कैद हो गई और साहित्य चाह कर भी लवी के लिए कुछ नहीं कर पा रहा था। 

लवी अंदर जाते ही बेहोश हो गयी, जबकि साहित्य  मदद के लिए सबको पुकार रहा था। उसने उस आदमी को फोन किया,  जिसने उसे यहां पर भेजा था। 

"आपने जिस नंबर को डायल किया है, वह सही नही है। कृपया सही नम्बर नंबर डायल करे"

साहित्य उस कंप्युटराईजड आवाज़ को सुनकर डर गया, क्योंकि उसने उन नंबर पर लगभग 4 से 5 बार पहले भी बात की थी और अब वह नंबर गलत बताए जा रहे थे। साहित्य ने इधर उधर देखा कि कहीं कोई मंदिर या कोई पवित्र जगह दिखाई दे, तो वह वहां से मदद के लिए किसी को लेकर आए। 

लेकिन जब वह आगे बढ़ने लगा, तो कोई उसका पैर पीछे की तरफ पकड़कर खींचने लगता है। साहित्य को अपने चारों और कोई नहीं दिखाई दिया और अगले ही पल उसने अपने आप को एक अंधेरे तहखाने में पाया... जहां वह सभी बच्चे उसकी तरफ बढ़ रहे थे। 

"प्लीज मुझे जाने दो... मैंने आप लोगों का क्या बिगाड़ा है। मैं तो आपकी मदद करने के लिए ही यहां पर आया था।" साहित्य ने गिड़गिड़ाते हुए कहा। 

तभी वह देखता है कि उसकी टीम के चारों मेंबर्स रवि, योगेश, दीपक और सावी जो कि छुट्टी का बोल कर घर पर गए थे, वह भी वहां पर मौजूद थे और जोर-जोर से वहां पर हंस रहे थे

तुम .... तुम चारों यहां पर क्या कर रहे हो ? तुम लोग तो छुट्टी पर गए हुए थे ना? साहित्य ने हैरानी से पूछा। 

सावि - " कोई देखो तो इस घोस्ट हंटर को... अपने आस पास के ही भूतो को नही पकड़ पाया और ये यहाँ हवेली में आया है। 

"आया कहाँ सावि....इसे तो यहां लाया गया है। बहुत बेसब्री से इंतजार किया है इस अमावस्या का। इसी अमावस्या को तुमने बहुत मासूमों की जान ली है। कहते हैं इंसान को अपना किया हुआ बुरा कर्म किसी न किसी जन्म में जरूर भुगतना पड़ता है" योगेश हंसते हुए बोला। 

साहित्य - "आखिर रहस्य क्या है इस अमावस्या का और मेरा इन सब से क्या लेना देना है.... मैने कुछ नही किया है। 

दीपक - " रहस्य जानना चाहते हो ना तुम। तो सुनो ...
यह तुम्हारी आत्मा का मनुष्य रूप मे सातवां जन्म है। अपने पहले जन्म में तुम इस हवेली के ठाकुर थे। जब तुम्हारे बेटा पैदा हुआ तो एक हाथ नहीं था.... तुम ने अपने उस बेटे को उम्र भर तिरस्कृत किया और कभी उसे अपने बेटे का दर्जा नही दिया.... 

जैसे ही दीपक ने अपनी बात खत्म की ....उसका एक हाथ गायब हो गया और उसके आंखों में खून के आंसू आने लगे।
 रवि और योगेश ने उसके पास आकर उसे दिलासा दिया और सावि ने आकर उसके आँसू पोंछे। 

साहित्य - " हो कौन तुम लोग आखिर? "

सावि - " दीपक तुम्हारा वही अपाहिज बेटा है, जिसका एक हाथ नहीं था और मैं उसकी पत्नी हूं। योगेश और रवि उसके दोस्त थे, जब दीपक को तुमने अपाहिज देखा तो अपने आगे आने वाले जन्मों को संवारने के लिए और हर जन्म में एक पूर्ण इंसान बनने के लिए तुमने हर अमावस्या के दिन चुने हुए सात बच्चो के अंग निकलवा कर उन की काली शक्तियों को आहुति दी थी। यह सभी बच्चे वही हैं, जिनके अंग तुमने निकलवाए थे। जब हम लोगों ने तुम्हें रोकने की कोशिश की तो तुमने हमें मरवा कर इस हवेली के तहखाने में हमारी आत्माओं को कैद करवा दिया और  इन बच्चों की लाशों को हवेली के निचले हिस्से के कमरो मे फिंकवा दिया था। यह तुम्हारा सातवा जन्म है... 6 जनम तुमने एक पूर्ण इंसान के रूप मे बीता दिए है। लेकिन इस सातवें जन्म में तुम्हारे सभी तंत्र मंत्र टूट गए हैं। 

रवि - "जान लिया अमावस्या का रहस्य.... अब अपनो कर्मो की सज़ा भी भुगत.... 

अगले ही पल वह सभी बच्चे की आत्माओ ने साहित्य पर हमला बोल दिया और उसके अंदर समा गयी। 
अगले दिन लवी ने खुद को अपने घर पर पाया, और उसके जेहन मे कल रात की कोई याद नही थी। 
अगली सुबह वह धर्मशाला वापस एक खंडहर में बदल गयी, मानो वहाँ कभी कुछ हुआ ही न हो। 

अगली अमावस्या की रात.... 

अगली अमावस्या की रात को वह खंडहर फिर से एक धर्मशाला में बदल गया, वहां पहले की तरह बहुत सारे कमरे तो थे. लेकिन उन बच्चों की आत्माएं वहां पर नहीं थी।

"कोई मुझे यहाँ से बाहर निकालो... " वहाँ सिर्फ एक अतृप्त आत्मा मौजूद थी। वो साहित्य था, जिसके शरीर पर असंख्य अंग निकले थे और वो उस हवेली मे फँस कर रह गया था। 


समाप्त...! 


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7 Comments

Shrishti pandey

19-Dec-2021 03:10 PM

Nice

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Abhinav ji

18-Dec-2021 10:14 PM

बहुत ही बढ़िया

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Shaba

18-Dec-2021 05:54 PM

बढ़िया हाॅरर कहानी है।

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